पायलट-गहलोत की लड़ाई से गुजरात में कांग्रेस को नुकसान, गहलोत खुद है सीनियर ऑब्जर्वर
राजस्थान में पायलट-गहलोत की लड़ाई को चलते हुए लगभग 4 वर्ष हो गए हैं और यह अभी भी जारी है। जनता के साथ कांग्रेस को भी इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसी साल के अंत में गुजरात में विधानसभा चुनाव है, गहलोत गुजरात के सीनियर ऑब्जर्वर भी है साथ ही प्रदेश के 34 विधायकों को वहां पर्यवेक्षक बना रखा है। लेकिन पायलट-गहलोत गुटबाजी में कोई भी गुजरात के दौरा नहीं कर पा रहे और सही रणनीति के साथ आगे नहीं बढ़ पा रहे। जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर देने में कामयाब रही थी।
राजस्थान के सियासी भूचाल से गुजरात चुनाव कांग्रेस के लिए जरूरी नहीं लग रहा। गहलोत को यहां सीनियर ऑब्जर्वर बनाया गया, वहीं उनकी सरकार के 13 मंत्री, 11 विधायकों सहित 2 पूर्व सांसदों और बोर्ड निगम के 2 अध्यक्षों को भी पर्यवेक्षक बनाया गया है। लेकिन इसी बीच राजस्थान में नए मुख्यमंत्री को लेकर जो सियासी बवंडर उठा उसने राजस्थान के नेताओं का गुजरात से फोकस पूरी तरह खत्म कर दिया। अगस्त और सितंबर के पहले सप्ताह तक गहलोत और उनके मंत्रियों ने गुजरात के 2 दौरे किए, लेकिन इस घटनाक्रम के चलते राजस्थान के नेताओं के गुजरात दौरे बंद हो गए।
राजस्थान में भी अगले साल विधानसभा चुनाव
गुजरात विधानसभा चुनावों के बाद अगले साल राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव हाेने हैं। ऐसे में वहां पर्यवेक्षक लगाए गए राजस्थान के नेताओं का रुझान गुजरात से ज्यादा अपनी विधानसभा पर है। यहां तक कि सरकार के मंत्री भी अब ज्यादातर समय अपनी विधानसभाओं में ही बिता रहे हैं।
दिल्ली से भी निर्देश नहीं कि नेताओं को गुजरात कब जाना है
पिछले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा के बीच यहां कांटे की टक्कर थी। लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने भी यहां ताल ठोक दी है। ऐसे में कांग्रेस मौजूदा स्थिति से जल्द बाहर नहीं निकली तो उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। वहीं दिल्ली से भी कोई निर्देश नहीं हैं कि राजस्थान के नेताओं को गुजरात कब जाना है।
चुनावों में पर्यवेक्षक बनाए गए एक मंत्री का कहना है कि राजस्थान में पिछले दिनों जो राजनीतिक घटनाक्रम घटा उसकी वजह से सभी का ध्यान गुजरात से कहीं न कहीं हट गया है। अब राजस्थान के नेता गुजरात में प्रचार के लिए जाते भी हैं तो भाजपा राजस्थान के घटनाक्रम को वहां मुद्दा बनाएगी।